ध्वजारोहण – त्याग, प्रेरणा, अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक

ध्वजारोहण (झंडा फहराना) केवल एक औपचारिक या राष्ट्रीय अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व भी जुड़ा है। इस

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ध्वजारोहण (झंडा फहराना) केवल एक औपचारिक या राष्ट्रीय अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व भी जुड़ा है। इसके धार्मिक और साहित्यिक महत्वों को सूक्ष्मता से समझा जा सकता है।

आध्यात्मिक महत्व की चर्चा करें तो यह स्वाभिमान और आंतरिक जागृति का प्रतीक माना गया है। झंडा फहराने का अर्थ स्वयं को गौरव, साहस और सत्य के प्रति जागृत करना है। यह मन में आत्मबल, संकल्प और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। ध्वज को ऊँचाई पर फहराने का अर्थ है दिव्य चेतना को जागृत करना और ईश्वर की उपस्थिति को आमंत्रित करना। ध्वज को “ऊर्जा का केंद्र” भी माना जाता है। इस दौरान ध्वज यह भी संदेश देता है कि मनुष्य अपना अहंकार छोड़कर ईश्वर या धर्म के प्रति समर्पित है। यह श्रद्धा, विनम्रता और आत्मसमर्पण का प्रतीक माना गया है।

धार्मिक ध्वजों को घर, मंदिर, मठ, या पर्वतों पर लगाने के पीछे मान्यता है कि यह नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के साथ उस स्थान की ऊर्जा को पवित्र रखते हैं और दिव्य आशीर्वाद आकर्षित करते हैं। बौद्ध धर्म में प्रार्थना के ध्वज इसी कारण लगाए जाते हैं। यह स्थान, संस्था या समुदाय की आध्यात्मिक पहचान भी बताता है यथा – मंदिरों में भगवा ध्वज, गुरुद्वारों में निशान साहिब, जैन मंदिरों में पंचरंगी ध्वज, ये सभी अपने-अपने गौरव, मर्यादा और पवित्रता को दर्शाते हैं।

सामान्य तौर पर ध्वजारोहण त्योहारों, आराधना के दिनों, या विशेष आध्यात्मिक अवसरों पर किया जाता है, जो संकेत देता है कि आज का दिन पवित्र और आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत है। प्राचीन काल से ध्वज सत् की असत् पर विजय का प्रतीक माना गया है। धार्मिक ध्वज फहराना बताता है कि धर्म, सत्य और सद्गुण की शक्ति सदैव विजयी होती है।

इसके अलावा ध्वज किसी भी समुदाय, राष्ट्र या संस्था की सामूहिक ऊर्जा और पहचान का प्रतीक माना गया है। जब ध्वजारोहण होता है, तो उपस्थित लोग एक साझा चेतना और भावनात्मक एकता का अनुभव करते हैं। यह भी एक आध्यात्मिकता का रूप है। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति की दृष्टि से प्रतीकों का सम्मान, चाहे वह कोई देव-विग्रह हो या राष्ट्रीय ध्वज, मन को अनुशासित, विनम्र और आदर्शों के प्रति समर्पित बनाता है। यह आध्यात्मिक साधना का ही विस्तृत रूप है। विद्वानों का मत है कि झंडे का ऊपर उठना मानव की ऊर्ध्वगामी चेतना, प्रगति और उन्नति का प्रतीक है। यह संदेश देता है कि जीवन में मूल्य, आदर्श और कर्तव्य हमेशा उच्चतम स्थान पर होने चाहिए।

सांस्कृतिक और साहित्यिक भाव में मानें तो ध्वज एक अत्यंत प्रभावशाली प्रतीक रहा है। कविता, कहानी और निबंधों में ध्वज प्रायः स्वतंत्रता, संघर्ष और विजय का प्रतिनिधित्व करता है। झंडे का प्रत्येक रंग और उसकी फहराहट अपने निहितार्थ में उन लोगों के त्याग और संघर्ष को याद दिलाती है, जिनके कारण यह सम्मान संभव हुआ। साहित्य में यह भाव गहराई और करुणा दोनों पैदा करता है। इसके अलावा ध्वज हवा में लहराता हुआ गतिशीलता, आशा और सतत प्रयास का प्रतीक बन जाता है। इसीलिए कवि, लेखक और नाटककार इसे प्रेरणा, संघर्ष और आदर्शों के रूपक के रूप में प्रयोग करते हैं। साहित्य में यह अस्मिता, पहचान और गौरव के विमर्श को समृद्ध करता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि ध्वजारोहण का आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्मसम्मान, एकता, ऊर्ध्वता, ऊर्जा और चेतना जगाना, जबकि साहित्यिक क्षेत्र में स्वतंत्रता, त्याग, प्रेरणा, अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव का सशक्त प्रतीक माना गया है।

सुबोध मिश्र

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